ऐलान किया हरिने
( तर्ज : एहसान तेरा होगा मुझपर ... )
ऐलान किया हरिने उसी दिन ,
मैं मानव - जन्म तुम्हें देता ।
कहिं तुमही भुले जावो मुझको ,
तब पाओगे भारी गोता ॥ टेक ॥
मुझमें नहीं है भेद किसीका ,
कौन दरिद्री , कौन सखीका !
जिसने किया दुनिया में करम ,
वहि प्यारा सबकाही होता ।।
कहिं तुमही भुले
जाओ मुझको ! ॥ १ ॥
इन आँखोंसे कोई अंधा है ,
कोइ हाथ - पाँवसे है लँगडा !
यहाँ तिरछा भी बनता है कोई ,
सब अपने करमका है नाता ।।
कहिं तुमही भुले
जाओ मुझको ! ॥ २ ॥
बालकपनसे ज्ञानी बनकर ,
लेता है बैराग चढाकर ।
लाखोंको करे उपदेश कोई ,
किस्मत की ऐसी हैं बाता ।।
कहिं तुमही भुले
जाओ मुझको ! ॥३ ॥
क्यों नाहक उनपर दोष
अपन देकर फिर पछताता है मन ।
कहता तुकड्या सुन सज्जन तू
हुशियार रहे जग में जाता ॥
कहिं तुमही भुले
जाओ मुझको ! ॥४ ॥
राजगोपाल - मंदिर , अयोध्या ;
दि . ११-८-६२
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